भाजपा उत्तर में निश्चिंत पर दक्षिण में अनिश्चय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2024 के चुनावों में भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 सीटों का लक्ष्य तय करने के बाद चुनावी पंडित यह गणना करने में जुट गए हैं कि इसे हासिल करने के लिए भाजपा अपनी सीटें कहां से बढ़ा सकती है। भाजपा दोतरफा रणनीति पर काम कर रही है। पहली है, दक्षिणी राज्यों में पैठ बनाना। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि भाजपा पहले ही उत्तर-पश्चिम के कई राज्यों में चरम पर पहुंच चुकी है। दूसरी रणनीति है पुराने सहयोगियों को एनडीए में वापस लाने और नए सहयोगियों को जोड़ने की, जिसमें वह अब तक काफी हद तक सफल भी रही है। जदयू एनडीए के साथ फिर से आ गई है, रालोद भी एनडीए में लौट आई है, पंजाब में अकाली दल को वापस लाने के प्रयास जारी हैं और तेदेपा के साथ बातचीत अंतिम चरण में है। कुछ और पार्टियां एनडीए में शामिल हो सकती हैं।
लेकिन एनडीए के विस्तार भर से भाजपा को 2024 में 370 सीटें नहीं मिलने वालीं। इसके लिए भाजपा को दक्षिण के राज्यों में अपनी पहुंच बढ़ाने की भी जरूरत है, जहां 2019 में उसका प्रदर्शन खराब रहा था। कर्नाटक ही अपवाद था। भाजपा दक्षिण के राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। राम मंदिर का उत्साह निश्चित रूप से उत्तर भारतीय हिंदी पट्टी के राज्यों में अधिक है, लेकिन दक्षिण भी भाजपा को कुछ चुनावी लाभ दे सकता है। याद रहे कि भाजपा ने पहले ही दक्षिण भारतीय राज्यों के लिए मतदाता पहुंच कार्यक्रम शुरू कर दिया है।
2019 में, सभी दक्षिणी राज्यों में से भाजपा ने कर्नाटक में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था। वहां उसने 51.4% वोटों के साथ 28 लोकसभा सीटों में से 25 सीटें जीती थीं। यह सच है कि 2024 में जेडीएस के साथ गठबंधन के बावजूद भाजपा कर्नाटक में इस प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद नहीं कर सकती है, लेकिन ऐसे अन्य राज्य भी हैं, जहां वह अपने पिछले प्रदर्शन की तुलना में बेहतर करने की उम्मीद बांधे हुए है। भाजपा ने तमिलनाडु में 2019 के चुनाव के दौरान अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन में 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 3.6% वोट हासिल किए थे। 2024 के लिए अभी तक वहां कोई गठबंधन नहीं हुआ है, फिर भी भाजपा के चुनावी प्रदर्शन में सुधार की संभावना है। गौरतलब है कि अमित शाह ने तमिलनाडु की
कमान संभाल ली है और पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख के. अन्नामलै को काम करने की खुली छूट दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तमिलनाडु का दौरा किया है, जिसे दक्षिण में भाजपा के चुनावी अभियान की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
दक्षिण के दो अन्य राज्य जहां भाजपा के पास अपने प्रदर्शन में सुधार करने की संभावना है- तेलंगाना और केरल हैं। 2019 में तेलंगाना में भाजपा ने 4 सीटें जीती थीं और 19.5% वोट हासिल किए थे। 2023 के विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद यह अहसास जरूर हो रहा है कि भाजपा तेलंगाना में अपना समर्थन-आधार नहीं बढ़ा पाई है, लेकिन किसी को नहीं भूलना चाहिए कि कई राज्यों में विधानसभा के लिए वोट करते समय मतदाताओं ने अलग वोट दिए हैं और लोकसभा चुनाव के लिए अलग। 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी वहां भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। उसे 7.0% वोट मिले थे और वह केवल एक सीट जीत पाई थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
भाजपा ने केरल में 1000 विस्तारकों की टीम गठित की है और लोकसभा प्रवास
अभियान शुरू किया है। भाजपा ने दक्षिण के राज्यों में अपना नेतृत्व युवाओं को सौंप दिया है और वहां वह वह सोशल इंजीनियरिंग का प्रयास कर रही है।
केरल में भाजपा 2019 में कोई सीट नहीं जीत सकी थी, लेकिन उसे 12.9% वोट मिले थे। केरल में पार्टी संख्यात्मक रूप से मजबूत ईसाई समुदाय को लुभाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। वहां उच्च श्रेणी के किसानों का बड़ा हिस्सा ईसाई समुदाय से है और इसलिए रबर की कीमतों जैसे मुद्दों को उजागर किया जा रहा है। टेलिचेरी (थालास्सेरी) मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप मार जोसेफ पैम्प्लानी ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर रबर की कीमतें 300 रु. प्रति किलो तक बढ़ाई जाती हैं तो वे चुनाव में भाजपा का समर्थन करेंगे। तिरुवनंतपुरम भाजपा के लिए उम्मीद की किरण रहा है। वहां उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन 2014 में था जब पार्टी के दिग्गज नेता ओ. राजगोपाल जिन्हें 32.3% वोट मिले थे- कांग्रेस उम्मीदवार शशि थरूर से मामूली अंतर से हार गए थे। भाजपा की नजर सेंट्रल केरल की पठन्मथित्ता सीट पर भी है, जहां 58% हिंदू आबादी है। 2019 में भाजपा ने वहां अपने केरल राज्य अध्यक्ष के. सुंदरम को मैदान में उतारा था और वे पार्टी के वोट शेयर को 15.9% से बढ़ाकर 28.9% पर ले आए थे।