विकास के नाम पर इंसान खुद को मार रहा है!

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इंसान अपनी प्रकृति को क्यों मार रहा है यह आप सब लोग जानते ही हैं इंसान की प्राथमिकताएं बढ़ रही है जनसंख्या विस्फोट हो रहा है और इसी कारण से इंसान की जीवन शैली में परिवर्तन हो रहा है इससे हमारी प्रकृति को काफी बड़ा नुकसान हो रहा है आज हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से बहुत बड़े संकट से भारत ही नहीं पूरा विश्व इस समस्या से टक्कर दे रहा है हमें आज प्रकृति के बारे में सकारात्मकता के जरिए हमारी प्रकृति को हमारे आने वाले पीढ़ी को बचाने के लिए प्रकृति की रक्षा करनी होगी आज हमें छोटे से छोटे लक्ष्य तैयार करने होंगे कि हम प्रकृति को कैसे बचाएं और प्रकृति पूरक व्यवसाय नीतियां कैसे बनाएं आज हम मुकाम पर खड़े हैं इतनी शोध संस्थाएं बन रही है बड़े-बड़े शोध लगाकर हम चांद से ज्यादा मंगल ग्रह पर या भेज रहे हैं पर हमें अपने प्रकृति के बारे में और जानने की जरूरत है हमें आज प्रकृति के बारे में सूचना ही होगा नहीं तो कल क्या होगा किसने जाना यह स्थिति मानव जीवन और इंसान के लिए भयानक स्थिति हो जाएगी हमें आज से ही सूचना होगा कि हम प्रकृति की रक्षा कैसे करें और प्रकृति को कैसे बचाएं हमें संकल्प लेना होगा कि हम प्रभृति की रक्षा करें और प्रकृति हमारी रक्षा करेगी और इसी संकल्प से हमें पृथ्वी को बचाना होगा हमारी धरती हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।


हम अभी कोयले से बिजली बनाते हैं इससे हमें और पर्यावरण को हानि होती है इससे उपाय के लिए हमें सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ना चाहिए।

मानव विकास की दृष्टि से संचार व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें संचार सुविधाएं एवं उपकरण उपलब्ध होना बहुत जरूरी है। 
अब यातायात सुविधाएं काफी हद तक विकसित हो गई हैं। हाल ही में सड़कों का जाल बिछाया गया है। सड़क के बिना उस क्षेत्र का विकास संभव नहीं है. उसी अर्थ में सड़कों का अद्वितीय महत्व है। उदाहरण के लिए, मानव शारीरिक विकास की दृष्टि से ये सड़कें हर जीवित प्राणी के शरीर में रक्त वाहिकाओं जितनी ही महत्वपूर्ण हैं। यदि किसी जानवर या इंसान के शरीर में रक्त वाहिकाएं अनुपस्थित या क्षतिग्रस्त हैं, तो वह जानवर या इंसान जीवित नहीं रह सकता है। इसी प्रकार भौतिक विकास की दृष्टि से भी सड़कें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सड़कें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा सुविधाओं तक तत्काल पहुंच प्रदान कर सकती हैं। सभी आवश्यक वस्तुएँ समय पर प्राप्त की जा सकेंगी। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मदद मिलती है. संक्षेप में कहें तो मानव विकास की दृष्टि से सड़कें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

सड़कों के महत्व या आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए न केवल एक गाँव या शहर, बल्कि गाँव के भीतर या शहर के भीतर की सड़कों को भी मजबूत और टिकाऊ बनाया गया है, और कुछ स्थानों पर बनाई जा रही हैं। आजकल अधिकतर सड़कें सीमेंट से बनी होती हैं। जहां सीमेंट की सड़कें बनाई जाती हैं, वहां सड़कों की ऊंचाई मूल ऊंचाई से कम से कम दो फीट बढ़ा दी जाती है। सीमेंट की सड़क ऊंची होने के कारण सड़क के दोनों ओर गिट्टी या रोड़ी डालनी पड़ती है। इस जोड़ को जोड़ने के लिए, पहाड़ों या पहाड़ियों को दूसरी तरफ से खोदा जाता है और उसमें पत्थर या चट्टानें जोड़ी जाती हैं, जबकि कुछ स्थानों पर जमीन में एक छेद किया जाता है और उसमें से पत्थर और पत्थर निकाले जाते हैं और समतल किया जाता है। सड़कें समानांतर बनाई गई हैं।

सड़क तैयार करते समय मूल सड़क को खोदकर सड़क निर्माण सामग्री डालनी चाहिए। अर्थात यदि सड़क बनाते समय सड़कों की पूर्व ऊंचाई या स्तर बरकरार रखा जाए तो जगह-जगह से पत्थर और बजरी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यानी पहाड़-पहाड़ खोदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी इंसानों को धरती के मूल स्वभाव को बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा.

चूंकि गांव या शहर के अंदर की सड़कें सीमेंट से बनाई जाती हैं, इसलिए उनकी ऊंचाई पुरानी सड़कों की तुलना में कम से कम दो फीट बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप सड़कों के किनारे बने मकानों के आंगन में गहरा क्षेत्र बन जाता है। गहरा क्षेत्र होने के कारण बरसात के दिनों में प्रांगण में तालाब बन जाते हैं, इसलिए वहां रहने वाले लोग कहीं न कहीं से पत्थर, मिट्टी लाकर सड़क के स्तर से ऊपर भर देते हैं। यदि ऐसी सड़कें हर दस से पंद्रह साल में बनाई जाएं तो सड़कों की ऊंचाई मूल ऊंचाई से कितनी बढ़ जाएगी? साथ ही उनके पार्श्व क्षेत्र की ऊंचाई भी कितनी बढ़ जाएगी? अर्थात्, तराई क्षेत्र ऊंचे और ऊंचे होते जाएंगे, और पहाड़ियां और पहाड़ समतल होते जाएंगे। संक्षेप में कहें तो समय के साथ पूरी पृथ्वी चपटी हो जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पृथ्वी की प्राकृतिक संरचना बिगड़ जायेगी और प्राकृतिक सौन्दर्य भी नष्ट हो जायेगा। ये सब होगा तो कौन

प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जरूर सोचना चाहिए। यह मानवीय गतिविधि पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर देगी। वन क्षेत्र अवश्य घटेगा। परिणामस्वरूप पेड़ों की संख्या कम हो जायेगी तथा पशु-पक्षियों की संख्या में काफी कमी आ जायेगी तथा प्राकृतिक खाद्य शृंखला बाधित हो जायेगी। यदि खाद्य शृंखला टूट गई तो परिणाम क्या होंगे? कहने की आवश्यकता नहीं। केवल हम ही भविष्य में आने वाले संकटों को रोक सकते हैं। इसके लिए कुछ देखभाल की आवश्यकता होती है; लेकिन हम सिर्फ और सिर्फ अभी या वर्तमान स्थिति के बारे में ही सोचते हैं। हमारे पास भविष्य के बारे में सोचने का समय नहीं है; लेकिन अगर हम अभी से कुछ सावधानियां बरतेंगे तो भविष्य जरूर सुरक्षित रहेगा। इसके लिए हमें अपने कुछ तरीकों में बदलाव करना होगा। सड़क तैयार करते समय मूल सड़क को खोदकर सड़क निर्माण सामग्री डालनी चाहिए। अर्थात यदि सड़क बनाते समय सड़क की पूर्व ऊंचाई या लेवल बरकरार रखा जाए तो जगह-जगह से पत्थर और बजरी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

यानी पहाड़-पहाड़ खोदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी इंसानों को धरती के मूल स्वभाव को बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा. वन क्षेत्र नहीं घटेगा. पशु-पक्षियों के लिए स्थाई आवास होगा।

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