हम पानी के महत्व को भूल गए हैं, जिससे हर साल विश्व आर्द्रभूमि दिवस की याद दिलाना जरूरी-सा हो गया है
अगर धरती पर पानी नहीं होता तो आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता, यह कड़वी वास्तविकता है. इसी से स्वच्छ प्राकृतिक जल स्रोतों के असीमित महत्व को समझा जा सकता है
आज 2 फरवरी को जब दुनिया आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) दिवस मना रही है, यह समय है कि हम व्यक्तिगत रुप से और एक राष्ट्र के रुप में-प्राकृतिक संपदाओं-अपनी आर्द भूमियों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प लें. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो अपने पतन की कगार के बहुत नजदीक पहुंच जाएंगे. सच कहूं तो ऐसे दिनों का ‘जश्न’ मनाने की जरूरत नहीं है. आर्द्र भूमि (नदियां, झीलें, तालाब, पोखर, खारे पानी के दलदल, मैग्रोव आदि) का संरक्षण स्वाभाविक रूप से होना चाहिए, क्योंकि यदि वे सब अतिक्रमण के कारण नष्ट हो जाते हैं या बुरी तरह से प्रदूषित हो जाते हैं तो मानव
अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
फिर भी, वैश्विक आधुनिक समाज, जिसका महत्वकांक्षी लक्ष्य सूर्य, चंद्रमा, मंगल और न जाने किन किन पर विजय प्राप्त करना है, आर्दभूमियों के महत्व और उनके द्वारा पोषित बहुमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र से अनभिज्ञ है. यह बेहद दुःखद है. किसी भी व्यक्ति को इसके महत्व की जानकारी प्राथमिकता से होनी चाहिए, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित. हालांकि अनुभव कहता है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के ‘अशिक्षित’ लोग आर्द्र भूमि के महत्व को संभवतः शहरी भारतीयों के शिक्षित वर्ग से अधिक बेहतर जानते-समझते हैं. एक क्षण के लिए कल्पना करें
कि हमारे क्षेत्र में पेयजल के लिए न तो कोई झील होती, न कोई साफ नदी और न ही कोई अच्छा तालाब, तब क्या होता? अगर पानी नहीं होता तो आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता, यह कड़वी वास्तविकता है. इसी से स्वच्छ प्राकृतिक जल स्रोतों के असीमित महत्व को समझा जा सकता है.
भारत में सदियों से नदियों और झीलों के संरक्षण की समृद्ध परंपरा रही है. प्राचीन साहित्य झीलों के निर्माण की वैज्ञानिक तकनीकों और नदी प्रणालियों के संरक्षण के तरीकों से भरा पड़ा है जो सदियों से मौजूद हैं. सभी मानव बस्तियां जल स्रोतों के किनारे बसी. हालांकि बढ़ती आबादी, बढ़ते उपभोक्तावाद और जीवन जीने के अत्याधुनिक तकनीक तरीकों (ई-कचरा, प्लास्टिक वगैरह) के साथ, हम आसानी से पानी के महत्व को भूल गए हैं, जिससे हर साल विश्व आर्द्रभूमि दिवस (2 फरवरी) की याद दिलाना जरूरी-सा हो गया है. याद रखें, कारखानों में पीने का पानी तैयार करने की अभी तक कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है और ऐसे में प्रकृति का सम्मान करना ही जरूरी है. ताजा पानी बहुत दुर्लभ है जो पृथ्वी के कुल पानी का केवल तीन प्रतिशत है जरा सोचिए इस पर इस धरती पर अनगिनत आर्द्रभूमियां हैं।
बड़े भारतीय शहर प्रतिदिन 4000 करोड़ लीटर गंदे व प्रदूषित पानी का उत्सर्जन करते हैं. इस कचरे के एक तिहाई से भी कम का शुद्धिकरण सरकारी अमला नहीं कर पाता है. इसका अधिकांश भाग नदियों और झीलों में चला जाता है जो हमें पीने का पानी उपलब्ध कराते हैं. समस्या की भयावहता को समझने के लिए यह एक आंकड़ा काफी है. वेटलैंड्स को बचाने के लिए तालाबों संबंधी नियमों (2017) में अधिक स्पष्टता और इनके सख्त कार्यान्वयन की आवश्यकता है इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों व समाज को इनके संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए आज भी, कल भी और परसों भी। सरकार को भी सख्ती से पेश आना होगा. वरना ऐसे दिन तो आते-जाते रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में नमामि गंगे योजना के तहत करोड़ो रूपए का बजट जारी किया था हालांकि कुछ काम हुआ था पर जैसे हमने सफलता हासिल करनी चाहिए थी वैसे हमने नहीं हमें इसके लिए जन आंदोलन करना चाहिए था खास करके नदियों के इलाके में तालाबों की इलाकों में कुछ काम हुए नमामि गंगे परियोजना के तहत जैसे नदी में स्वच्छता करना। हमें नदियों तालाबों जैसे प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए हमें अपने घर से शुरुआत करनी चाहिए और एक मेगा पायलट प्रोजेक्ट के तहत एक विशेष कार्यक्रम चलाना चाहिए जो नदी नालों तालाबों की स्वच्छता परिपूर्ण की जा सके हमें घर गांव तहसील जिला राज्य और देश के मेगा प्रोजेक्ट के रूप में देखना चाहिए तभी हम नदी नालों तालाबों को संभाला जा सके। हमें सबसे पहले जो नदियों के इलाके में और नदियों के पास वाली क्षेत्र में जो औद्योगिक इकाइयां है और वह नदियों में प्रदूषित पानी केमिकल्स यह नदी के पात्र में छोड़ती है इसे विकल्प के तौर पर एक दूसरे जगह पर डाल देना चाहिए उसे नदी के पात्र में नहीं डालना चाहिए। उसे प्रतिबंधित करना चाहिए हमें और महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए जैसे की प्लास्टिक पॉलिथीन को पूरी तरह प्रतिबंध करना चाहिए और उसे प्रतिबंध करने से कोई नहीं होगा इसे मेगा प्रोजेक्ट के तरह काम करना चाहिए फैक्ट्री में पूरी तरह उसे बंद करना चाहिए जगह-जगह छापे तलाशी अभियान के तहत इसे पूरी तरह प्रतिबंधित करके जो प्लास्टिक पॉलिथीन कंपनियों में जो कामगार काम कर रहे हैं उसकी रोजगार पर कोई आंच ना आए उसे पर भी ध्यान देना चाहिए हमें जो तालाब नदियों को हानिकारक हानिकारक हो उसे प्रतिबंधित करना चाहिए हमें प्रकृति पूरक चीज समाज में लानी चाहिए और प्रकृति को बैलेंस करना चाहिए हमें सिंगल उसे प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध करना चाहिए जहां-जहां तालाब नदियों के इलाकों में एक अभियान के तहत लोगों को जागृत करना चाहिए कि नदियों तालाबों को हम प्रदूषण न करें और परियोजना के तहत नदियों तालाबों का सौंदर्यकरण करके पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए उनसे इस इलाके में रहने वाले नागरिकों को पर्यटन के तहत रोजगार मिले और भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे बहुत बड़ा फायदा होगा सरकार को ही नहीं इसे सामान्य नागरिक जैसे गांव में दुकानदार होटल के लोग किसान परिवहन के लोग इन सबको इस पर्यटन योजना के तहत बहुत आर्थिक उन्नति होगी और पर्यटन को बढ़ावा होगा और रोजगार के प्रश्न मिट जाएंगे हमें नदी तालाबों को एक बहुत बड़े रोजगार के रूप में रोजगार के रूप के तहत उसे देखना चाहिए और काम करना चाहिए तभी हम नदियों तालाबों को बचाने में सक्षम होंगे।
हमे अपने नदी-तालाबों को बचाने का लेना होगा संकल्प
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