प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नासिक-मुंबई दौरे से पार्टी के ‘इलेक्शन मोड में
महाराष्ट्र के नासिक शहर में मले ही राष्ट्रीय युवा सम्मेलन के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्य में आगमन हुआ हो, मगर संकेतों की भाषा समझने वालों के लिए साफ है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ‘इलेक्शन मोड’ में आ चुकी है. अब वह समय खाली जाने नहीं देना चाहती है और हर अवसर को भुनाने की तैयारी में है. इस पूरी रणनीति में राज्य की सत्ता में उसके भागीदार सक्रिय रूप से सहभागी हैं. भले ही सीटों को लेकर कोई सहमति बनी हो या नहीं. जमीनी स्तर का पार्टी कार्यकर्ता संयुक्त लड़ाई के लिए तैयार है या नहीं अथवा गठबंधन के ही कुछ उम्मीदवारों से मुकाबले की नौबत आने पर क्या हो सकता है.
शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी जब नासिक पहुंचे तो रोड शो हुआ. आम तौर पर उनके रोड शो में वह अकेले ही होते हैं, लेकिन इस बार उनके वाहन में राज्य की सत्ता में सहयोगी दल और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार भी सवार थे. राज्य भाजपा की ओर से देवेंद्र फडणवीस के अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी गाड़ी में देखे गए. प्रधानमंत्री ने नासिक में कालाराम मंदिर में दर्शन किए, जो एक प्राचीन राम मंदिर है. वहां सफाई भी की. उसके बाद वह मुख्य कार्यक्रम युवा सम्मेलन में पहुंचे. बाद में वह मुंबई के लिए रवाना हुए. जहां उन्होंने सबसे बड़े समुद्री पुल का उद्घाटन किया. यदि सभी आयोजनों को मिलाकर देखा जाए तो रोड शो, मंदिर दर्शन, युवा सम्मेलन और फिर विकास की सौगात सीधे तौर पर भाजपा के एजेंडे को रेखांकित करता है, जो चुनाव तक स्थापित किया जाएगा, एक तरफ मंदिर से लेकर विकास और दूसरी तरफ महिलाओं से लेकर युवाओं तक पहुंच के लिए पार्टी अपनी रणनीति को मजबूत बनाएगी.
अभी नासिक-मुंबई का दौरा पूरा भी नहीं हुआ था कि सोलापुर में प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम घोषित हो गया. वह आगामी 19 जनवरी को सोलापुर जाएंगे, जिसके साथ महाराष्ट्र के तीन अलग-अलग भागों में उनकी उपस्थिति के साथ भाजपा का संदेश जनता तक पहुंचेगा. आशा की जा सकती है कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले प्रधानमंत्री का विदर्भ और मराठवाड़ा भाजपा पिछले कुछ विधानसभा चुनावों, खास तौर पर गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि से चुनाव के पहले और चुनाव के बाद की रणनीति में अंतर रखने के लाभ-हानि समझ चुकी है. सत्ताधारी दल होने के
फायदे-नुकसान का संतुलन बनाना अब उसे अच्छी तरह आ गया है. यही वजह है कि वह लोकसभा चुनाव में काफी समय से सक्रिय हो चुकी है वह केवल सीटों के तालमेल में अपनी ऊर्जा समाप्त नहीं करना चाहती है. वह अपनी ताकत सत्ता विरोधी माहोल को कम और कमजोर करने में लगाना जान गई है. उसे सहयोगी दलों की सीमाओं का आकलन करना आता है, जिससे समय के अनुसार वह उनसे मोल-भाव कर लेती है. किंतु वह तालमेल पर खुद को आश्रित नहीं है।में भी एक-एक दौरा हो जाएगा. इसके बाद चुनाव की घोषणा होने के बाद विधिवत चुनाव प्रचार होगा, जिसका कार्यक्रम आवश्यकता के अनुसार बनेगा.
महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस का अजित पवार गुट, शिवसेना का शिंदे गुट भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. यह तय है कि किसी भी नेता को व्यक्तिगत आकांक्षा के आधार पर पार्टी का टिकट नहीं मिलेगा. पार्टी का टिकट जीत की संभावनाओं पर ही तय होगा. इसलिए इस बार महत्वाकांक्षा और अधिकार को ज्यादा महत्च नहीं मिल पाएगा, ताजा संकेतों के अनुसार भाजपा 48 सीटों में से तीस पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है इतनी सीटों पर उसने पहले कभी चुनाव नहीं लड़ा है. इस कारण राकांपा अजित गुट और शिवसेना शिंदे गुट के लिए ज्यादा अवसर नहीं बच पाएगा, क्योंकि कुछ सीटें इन दोनों के अलावा भी कुछ छोटी पार्टियों को दी जा सकती हैं. इस गठबंधन के साथ भाजपा राज्य में कम से कम चालीस सीटें जीतने का इरादा रखती है. इसलिए उसका अग्रिम पंक्ति में चुनाव के मैदान में उतरना लाजिमी है. भाजपा ने पिछला लोकसभा चुनाव शिवसेना के साथ गठबंधन कर लड़ा, जिसमें उसने समझौते के तहत 25 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे, जिनमें से 23 को चुनावी सफलता मिली. वहीं शिवसेना 23 सीटें लड़कर 18 सीटें जीत पाई थी, दोनों का संयुक्त रुप से संख्या बल 41 तक पहुंच गया था. अब इसे अन्य दो सहयोगियों के साथ चुनाव लड़कर हासिल करना है.
वर्ष 1995 के बाद से शिवसेना से गठबंधन करने के वाद भाजपा ने कभी अकेले लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. इस बार पहला अवसर होगा, जब उसे विभाजित शिवसेना के साथ चुनाव लड़ना होगा. इसी प्रकार अतीत में कभी-भी उसने धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के दल के साथ अपना चुनावी भविष्य नहीं आजमाया, मगर इस बार राकां का अजित गुट उसके साथ है. इस नए दौर की राजनीति और समीकरणों में भाजपा के समक्ष किसी किस्म के अंदाज लगाने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि मतदाता उद्धव ठाकरे की शिवसेना या शरद पवार की राकांपा के साथ सहानुभूति दिखाएगा या फिर नए समीकरणों को समझाने की कोशिश करेगा. इसीलिए भाजपा को अपना चुनाव कागजी तौर पर सरकार में सहयोगियों के साथ दिखाना मजबूरी है और अंदर से अपनी लड़ाई खुद लड़ने की तैयारी है. हाल के कुछ चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भाजपा के पूर्ण पक्ष में नजर नहीं आ रहे हैं, जिससे चिंता अपनी जगह बनी हुई है. मगर इतना तय है कि भाजपा परिणामों की चिंता किए बिना अपने प्रयास और परिश्रम में जुट चुकी है, जो राज्य के विपक्षी दलों में अभी दिखाई नहीं दे रहा है. भाजपा चुनाव से पहले अपने कुछ उम्मीदवारों के नाम घोषित कर सकती है. खेलों में ‘स्टार्ट’ और ‘फिनिश’का समय महत्वपूर्ण होता है. राजनीति के खेल में भी अब इसका महत्व बढ़ने लगा है. आने वाले दिनों में चुनाव को लेकर दूसरे दलों की भी गंभीरता सामने आएगी. फिलहाल तो
भाजपा ने दिल्ली की दौड़ आरंभ कर दी है. अब देखना यह
होगा कि कौन और कैसे उससे आगे निकलता है.
भाजपा ने चुनाव का बिगुल बजा दिया पार्टी पुरी तरह चुनावी मुड़ में
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